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मिलिए ब्राज़ील की उन दो महिलाओं से जिन्हें मिला पद्म श्री सम्मान

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मिलिए ब्राज़ील की उन दो महिलाओं से जिन्हें मिला पद्म श्री सम्मान

71वें गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री सम्मानों की घोषणा की गई। इस वर्ष 7 लोगों को पद्म विभूषण, 16 को पद्म भूषण और 118 लोगों को पद्म श्री सम्मान के लिए चुना गया है। इन 118 में दो ब्राज़ील की महिलएं भी शामिल हैं, जिन्‍होंने शिक्षा और समाजसेवा के क्षेत्र में अद्वितीय योगदान दिया है। ब्राज़ील की इन महिलाओं में एक हैं ग्लोरिया अरेरिया और दूसरी डा. लिया डिसकिन। ग्लोरिया संस्कृत और वेदांत की ज्ञाता हैं, जबकि लिया पिछले चार दशकों से महात्मा गांधी के विचारों को लोगों तक पहुंचाने का काम कर रही हैं।

ब्राज़ील में संस्कृत पढ़ाती हैं ग्लोरिया

ग्लोरिया अरेरिया ब्राज़ील की राजधानी रियो दे जनेरियो की रहने वाली हैं और संस्कृत और वेदांत में उन्‍होंने गहन अध्‍ययन किया है। आप संस्‍कृत पढ़ाने के साथ-साथ पुर्तगाली भाषा में अद्वैत वेदांत को आगे बढ़ाने का काम करती हैं। रियो दे जनेरियो समेत ब्राज़ील के कई शहरों में जा-जा कर संस्कृत पढ़ाने वाली ग्लोरिया नियमित रूप से आध्‍यात्म के भाषण देती हैं। साथ ही वेदों से मिलने वाला ज्ञान लोगों को बांटती हैं।

ग्लोरिया ने भागवद् गीता, उपनिषद समेत संस्कृत की कई पुस्तकों का अनुवाद पुर्तगाली भाषा में किया है। वेदांत दर्शन को आगे बढ़ाने के लिए उन्‍होंने एक गैर सरकारी संस्‍था विद्या मंदिर की स्‍थापना भी की। यह संस्‍था 1984 से लगातार सक्रिय है। यही नहीं ग्लोरिया भारत की संस्कृति का प्रचार-प्रसार भी करती हैं।

कहां से मिली प्रेरणा

अरेरिया ने जनवरी 1974 में स्वामी दयानंद के सानिध्‍य में अर्शा संदीपणी साधनालय, मुंबई में अपनी पढ़ाई शुरू की। जिस वक्त वो भारत में थीं, तब उन्‍होंने उत्तरकाशी और ऋषिकेश के आश्रमों की यात्रा की और फिर भारत की संस्कृति और संस्कृत भाषा को करीब से जानने के लिए कई सारी संगोष्ठियों में भाग लिया। दक्षिण भारत में तमिलनाडु और केरल के मंदिरों में गईं और वहां उन्‍होंने वेदों का ज्ञान हासिल किया। 1978 में वो ब्राज़ील लौट गईं और वहां जाकर उन्‍होंने इसी ज्ञान को लोगों में बांटना शुरू कर दिया।

महात्मा गांधी के विचारों का प्रसार करतीं लिया डिसकिन

ब्राज़ील के साओ पालो में रहने वाली लिया डिसकिन पिछले चार दशकों से महात्मा गांधी के विचारों का प्रचार प्रसार कर रही हैं। आप एक गांधियन स्कॉलर हैं, जो शांति और अहिंसा की मुहिम भी चला रही हैं। डिसकिन मूल रूप से अर्जेंटीना की हैं, लेकिन पिछले 30 वर्षों से ब्राज़ील में रह रही हैं। डा. लिया ब्राज़ील के कई विश्‍वविद्यालयों में पढ़ाती हैं। उन्‍होंने शिक्षा, शांति और संस्कृति पर कई पुस्तकें लिखी हैं। उनकी पुस्‍तक “पाज़, कोमो से फाज़” यानी कैसे शांति स्‍थापित करें, की 5 लाख से अधिक प्रतियां बिकीं और आगे चलकर उस पुस्तक को ब्राज़ील के छह राज्यों ने स्कूली पाठ्यक्रमों में शामिल किया। यह पुस्तक गांधी जी के विचारों से भरी हुई है।

लिया ने महात्मा गांधी की जीवनी- एन ऑटोबायोग्राफी – माय एक्सपेरीमेंट विद ट्रुथ का अनुवाद भी किया है। गांधी के विचारों को जन मानस तक पहुंचाने में अपना वृहद योगदान देने वाली डिसकिन को 2006 में संयुक्त राष्‍ट्र ने मानव अधिकार सम्मान से नवाज़ा था। उन्‍होंने कई परियोजनाओं पर काम किया है जैसे- गांधी नेटवर्क की स्थापना, जिसमें ब्राज़ील के 14 राज्यों के लोगों तक संस्कृति और शांति से जुड़े ज्ञान का प्रसार किया गया। इसमें हज़ारों की संख्‍या में लोगों ने भाग लिया।

सेना के जवानों को पढ़ाये गांधी जी के विचार

यूनेसको के द्वारा संचालित कार्यक्रम ‘डेकेड ऑफ कल्चर ऑफ पीस’ में आप समन्‍वयक के रूप में रहीं। 1998 में मिलिट्री पुलिस के बीच गांधी और ‘अहिंसा परियोजना’ को तैयार किया। 1999 में पुलिस अकादमी के लिये ‘अहिंसा एवं जन सुरक्षा परियोजना’ तैयार की।

डा. लिया ने 1972 में पालास एथेना एसोसिएशन का गठन किया। यह संस्था 1982 से लेकर अब तक हर साल अक्तूबर माह में गांधी सप्ताह का आयोजन करती है। यह संस्‍था विभिन्न प्रकार की कार्यशालाओं, संगोष्ठियों, परिचर्चाओं, लोक कलाओं, विज्ञान आदि के माध्‍यम से महात्मा गांधी के विचारों को प्रसारित करती हैं। जिस दिन संयुक्त राष्‍ट्र ने 2 अक्तूबर को अंतर्राष्‍ट्रीय अहिंसा दिवस घोषित किया था, उस दिन डा. लिया ने यूएन के मंच को संबोधित किया था।