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त्रिपुरा – लोक संस्कृति से आईटी हब तक

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त्रिपुरा – लोक संस्कृति से आईटी हब तक

त्रिपुरा राज्य की बात आते ही यहां की लोक कलाएं एवं नृत्य ज़हन में आ जाते हैं। असल में यहां की संस्कृति में आज भी प्राचीन भारत के माणिक्य साम्राज्य की झलक दिखाई देती है, जिसने ब्रिटिश शासन काल तक इस राज्य पर शासन किया। पर्यटन के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाने वाले राज्यों में से एक त्रिपुरा आज अपने प्राकृतिक संसाधनों और मानव संसधन के बल पर भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में बड़ी भूमिका निभा रहा है। 21 जनवरी को राज्य का स्थापना दिवस मनाया जाता है। आज ही के दिन 1972 में त्रिपुरा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया था।

त्रिपुरा का संक्षिप्त इतिहास

त्रिपुरा में एक समय में माणिक्य साम्राज्य के राजाओं का शासन था। ब्रिटिश काल में भी त्रिपुरा के राजाओं का शासन चलता था और यह पूर्ण रूप से स्वतंत्र राज्य के रूप में जाना जाता था। 15 अक्तूबर 1949 को भारत गणराज्य का हिस्सा बनने से पहले यहां 184 राजाओं ने शासन किया। तब से लेकर अब तक त्रिपुरा कई राजनीतिक पार्टियों के शासन का गवाह बना। आज यह राज्य आर्थिक और सामाजिक विकास की मुख्‍य धारा का हिस्सा बना हुआ है।

26 जनवरी 1950 को त्रिपुरा को ‘सी’ श्रेणी के राज्यों में शामिल किया गया। 1 नवंबर 1956 में इसे केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया। आम लोगों की मांग और संघर्ष के बाद पूर्वोत्तर पुनर्गठन अधिनियम 1971 के तहत 21 जनवरी 1972 को त्रिपुरा को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। उसके बाद 1978 में राज्य में गांव स्तर पर पंचायती राज प्रणाली को लागू किया गया।

संविधान की सातवीं अनुसूचि के तहत त्रिपुरा की भाषा और जनजातीय संस्कृति के संरक्षण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए स्वायत्त जिला समिति का गठन 1982 में किया गया। आगे चलकर 1985 में इसे संविधान की छठी अनुसूचि में स्थानांतरित कर दिया गया।

त्रिपुरा से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्‍य

  • एक समय में त्रिपुरा में एकल-जिला शासन हुआ करता था। लेकिन आगे चलकर इसे 8 जिलों में बांट दिया गया।
  • राज्य में 58 ग्रामीण विकास ब्लॉक, 591 ग्राम पंचायत, आठ जिला परिषद, 9 नगर पंचायत, 10 म्युनिसिपल काउंसिल और 1 म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन हैं।
  • 10,491.69 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले त्रिपुरा को राष्‍ट्रीय राजमार्ग एनएच-44 देश के अन्य राज्यों से जोड़ता है।
  • एनएच-44 त्रिपुरा को असम, मेघालय, उत्तर बंगाल, कोलकाता समेत कई अन्य भागों से जोड़ता है।
  • 2011 के सेंसस के अनुसार त्रिपुरा में 96 प्रतिशत लोग साक्षर हैं।
  • बांग्ला, कोकबोरोक और अंग्रेजी त्रिपुरा की अधिकारिक भाषाएं हैं।
  • त्रिपुरा में मोघ, चकमा, हल्म, गारो, बिष्‍णुप्रिया मणिपुरी, मणिपुरी, हिन्दी, ओडिया आदि भाषाएं भी बोली जाती हैं।

कला एवं संस्कृति का अनूठा संगम है त्रिपुरा

त्रिपुरा अपनी एक अलग संस्कृति के लिये जाना जाता है। यहां के जनजाति और गैर-जनजाति लोगों की लोक संस्कृति विश्‍व प्रसिद्ध है। यहां के नृत्य और संगीत में पूर्वोत्तर भारत की संस्‍कृति का एक अजब संगम नजर आता है। यहां के कुछ नृत्य इस प्रकार हैं-

गारिया नृत्य

यहां मॉनसून के पहले मनाये जाने वाले गारिया पर्व में गारिया नृत्य देखने को मिलता है। यह पर्व अच्‍छी बुआई की खुशी में मनाया जाता है, जिसमें गारिया भगवान से अच्‍छी फसल के लिए प्रार्थना की जाती है। इस नृत्य में बनजे वाला संगीत बांस की खपच्चियों से निकलता है, जो बेहद आकर्षक लगता है। यह नृत्य करीब 500 वर्ष पुराना है, जो आज भी यहां की शान है। इसे धामेल नृत्य भी कहते हैं।

होज़ागिरी नृत्य

होज़ागिरी नृत्य यहां का प्रसिद्ध जनजातीय नृत्य है। इसकी खास बात यह है कि इसमें शरीर के ऊपरी अंग नहीं चलाये जाते। केवल पैरों से ही सुगंम तरंगें उठती हैं। नृत्य करते वक्त लोग अपने सिर पर बोतल और जलता हुआ दीया भी रखते हैं। इस नृत्य के लिए खास तरह का संगीत होता है, जो खाम्‍ब, बांसुरी और बांस के बने मजीरे से बजाया जाता है। रियांग जनजाति के बीच यह नृत्य काफी लोकप्रिय है।

बीझू नृत्य

यह लोक नृत्य चकमा समुदाय में लोकप्रिय है। चैत्र-संक्रांति के अवसर पर इसका आयोजन किया जाता है। इसी दिन बंगाली वर्ष का समापन होता है। इस नृत्य के माध्‍यम से नये साल का स्वागत किया जाता है। वाद्य यंत्र खेंग-गरांग, धुकुक और बांसुरी का प्रयोग संगीत के लिए किया जाता है।

हई-हक नृत्य

यह नृत्य यहां के हलम समुदाय का प्रसिद्ध लोक नृत्य है। अच्‍छी फसल की कामना करते हुए यहां के लोग संगीत पर झूमते हैं। साथ ही माता लक्ष्‍मी के पूजन में इसका आयोजन किया जाता है। कई पर्वों पर यह नृत्य देखने को मिलता है।

वांगला नृत्य

फसल की कटाई के बाद यहां हर घर में वांगला पर्व मनाते हैं। इस अवसर पर तरबूज को काट कर बलि दी जाती है। इस मौके पर समुदाय के प्रमुख, जिन्‍हें संगनकमा कहते हैं, तरबूज काट कर पूजा करते हैं। इसके बाद महिलाएं धामा और आधुरी की धुन पर नृत्य करती हैं। धामा और आधुरी भैंसों की सींग से बने वाद्य यंत्र होते हैं। प्राचीन काल में इस नृत्य का आयोजन युद्ध अभ्‍यास के दौरान किया जाता था।

सृवागत नृत्य

इसमें लुसई लड़कियां रंग-बिरंगे कपड़ों में नृत्य करती हैं। सृवागत नृत्य का आयोजन घर आने वाले मेहमानों के स्वागत के रूप में होता है।

शेरॉव नृत्य

त्रिपुरावासियों का मानना है कि मृत्यु के बाद भी जीवन होता है। कहते हैं कि मनुष्‍य मृत्यु के बाद स्वर्गलोक को जाता है। त्रिपुरावासियों का मानना है कि अगर किसी गर्भवती महिला की मृत्यु हो जाए तो उसे स्वर्ग लोक की लंबी यात्रा में कठिनाई होगी। लिहाज़ा जब भी कोई महिला गर्भवती होती है, तो उसका खास ख्‍याल रखा जाता है। गृर्भावस्था के अंतिम पड़ाव में एक रस्म के रूप में शेरॉव नृत्य का आयोजन किया जाता है, जिससे गर्भवती महिला को शक्ति मिलती है। इस मौके पर घर के सभी लोग उपस्थित होते हैं और पूरे दिन नृत्य होता है। यहां के लोगों का मानना है कि अगर दुर्भाग्यवश गर्भवती महिला की मृत्यु हो जाती है, तो बांस से निकलने वाली तरंगे उसे स्वर्ग लोक तक जाने का साहस जुटाने में मदद करती हैं।

संगरई नृत्य

संगरई नृत्य त्रिपुरा के मोग समुदाय का लोक नृत्य है। इसका आयोजन संगरई पर्व के दौरान किया जाता है। यह बंगाली कैलेंडर के चैत्र माह में होता है। इस पर्व को खास तौर से युवा मनाते हैं।

Tripura

अर्थव्यवस्था- आईटी क्षेत्र में अग्रणी स्थान रखता है त्रिपुरा

  • त्रिपुरा की 42 प्रतिशत आबादी कृषि पर निर्भर है। यह ट्रू पोटेटो सीड की सबसे बड़ा उत्पादक है। रबर, चाय-आधारित प्लांट यहां के प्रमुख उद्योग हैं। रबर के उत्पादन में केरल के बाद त्रिपुरा दूसरे नंबर पर आता है।
  • यहां 54 चाय के बागान हैं, जो सात हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि पर फैले हुए हैं। 2017-18 में यहां 87.2 लाख किलोग्राम चाय का उत्पादन हुआ था।
  • हाल ही में यहां इस्पात उद्योग भी तेजी से बढ़ा है। त्रिपुरा में पांच इंडस्ट्रियल इस्टेट, एक इंडस्ट्रियल एरिया, दो ग्रोथ सेंटर और एक एक्सपोर्ट प्रोमोशनल इंडस्ट्रियल पार्क हैं, जो यहां की अर्थवयवस्‍था में बड़ा योगदान देते हैं।
  • यहां पर विद्युत उत्पादन मांग से अधिक है। यह राज्य प्राकृतिक गैस का बड़ा स्रोत है। खास कर मीथेन गैस का।
  • यहां के 7,195 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बांस की पैदावार होती है। बांस के उत्पादन में यह भारत में सबसे आगे है। फलों के उत्पादन में त्रिपुरा का जवाब नहीं। 2017-18 में यहां 555.473 हजार मीट्रिक टन फलों और 813.378 मीट्रिक टन सब्जियों का उत्पादन हुआ।
  • फूड प्रोसेसिंग मंत्रालय अगरतला के पास तुलाकोना में 50 एकड़ जमीन पर मेगा फूड पार्क स्‍थापित करने के लिये मंजूरी दे चुका है।
  • आईटी क्षेत्र में भी यह राज्य काफी आगे है। मुंबई और चेन्नई के बाद भारत का तीसरा इंटरनेशनल इंटरनेट गेटवे अगरतला से संचालित होता है। अगरतला में स्‍थापित सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क यहां का आईटी हब है।
  • त्रिपुरा में जैव-ईंधन और ईको-टूरिज्म की अपार संभावनाएं हैं। यहां पर दवाएं बनाने में मददगार पौधों की अच्‍छी पैदावार होती है। यह राज्य रेशम-उत्पादन के लिये भी जाना जाता है।
  • इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भी त्रिपुरा तेजी से आगे बढ़ रहा है।
  • जुलाई 2019 में यहां की हेवी इंडस्ट्री एंड पब्लिक एंटरप्राइसेस ने 50 इलेक्ट्रिक बसों को चलाने की मंजूरी दी।
  • जून 2018 में देश के राष्‍ट्रपति ने माताबारी से उदयपुर के सबरूम तक राष्‍ट्रीय राजमार्ग का उद्घाटन किया।
  • अगरतला के हवाई अड्डे में पहले केवल दोपहर को विमान उतर सकते थे, लेकिन अब यहां नाइट लैंडिंग भी संभव है।
  • पूरे राज्य में ऑप्टिकल फाइबर बिछाए जा रहे हैं, ताकि इंटरनेट की सेवाएं और सुगम हो सके।
  • रानिर बाजार में नहर, बेलोनिया, कैलाशहर और कमालपुर में सड़कों के विकास के लिये धन आवंटित किया जा चुका है।
  • अगरतला में अत्याधुनिक फूड पार्क स्‍थापित किया गया है, जिससे किसानों को उनके उत्पादों के विपरीत बेहतर मूल्य मिल रहे हैं।

पूर्वोत्तर भारत में बिछाई जा रही गैस ग्रिड त्रिपुरा से भी होकर जाएगी। कुल मिलाकर देखा जाये तो गैस ग्रिड ग्रिड से जुड़ने के बाद ईधन पहुंचाना सुगम हो जायेगा और इससे बड़े उद्योगों को सस्ता ईंधन प्राप्त हो सकेगा। इसमें कोई शक नहीं कि आने वाले वर्षों में यहां रोजगार के अवसर वृहद स्तर पर खुलेंगे।


मणिपुर- तेजी से आगे बढ़ती एक आर्थिक शक्ति